कार्तिक मास में प्रतिदिन पूज्य ज्वाला माता जी के मंदिर में अमृत वेले शंख ध्वनि साथ निकाली जाएगी प्रभातफेरी।
यमुनानगर प्रदेश एजेण्डा न्यूज़
पूज्य ज्वाला माता जी मंदिर आई टी आई में प्रतिदिन अमृत वेले शंख ध्वनि के साथ प्रभातफेरी निकाली जा रही है जिसमे पूज्य ज्वाला माता जी सुन्दर भजन गाकर पहुंची संगत को निहाल कर रहे है प्रभात फेरी से पहले श्री मंदिर में पूज्य ज्वाला माता जी अपने मुखारबिंद से कार्तिक मास की कथा का अध्याय संगत को सुनाते है और कार्तिक मास के महातम के बारे में व्याख्यान करते है। पूज्य ज्वाला माता जी ने बताया की धर्म शास्त्रों के अनुसार,कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान करना बताया गया है। इस महीने में नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है। इस महीने में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है। भूमि पर सोना कार्तिक मास का तीसरा प्रमुख काम माना गया है। भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं। कार्तिक महीने में द्विदलन अर्थात उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई आदि नहीं खाना चाहिए। शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है। मंदिर के सेवक समर्पित जी और सेवक रसिक जी का कहना है की पूज्य ज्वाला माता जी विश्व कल्याण और जन कल्याण के लिए तपस्या कर रहे है और प्रयासरत है की साध संगत को भक्ति मार्ग पे चलाया जाये ।उन्होंने बताया की श्री मंदिर में स्थापित हर स्वरुप मनमोहनिये है सभी साध संगत श्री मंदिर आकर स्वरुप के दर्शनों का लाभ उठा सकते है श्री मंदिर में शाम के समय और रात के समय सिर्फ रविवार को छोर कर प्रतिदिन सत्संग होता है ।